उलटा-पुलटा
चलते-चलते निचली छत से
गिरती जब छिपकली छपाक,
तुरत संभल जाती उस क्षण ही
उठ चल देती अपने आप।
ऊपर की डाली से बंदर
जब आ गिरता है नीचे,
झटपट पकड़ दूसरी डाली
हँसता है आँखें मीचे।
तिलचट्टे, चींटे जब चलते
एकाएक पलट जाते हैं.
झटक हाथ-पैरों को अपने
फिर सीधे हो चल पात है।
चीटी गिरती, मकड़े गिरते
गिरगिट गिरते और सँभलते.
गिरने पर वे साहस खोकर
कभी न अपनी आँख मलते।
गिरने और पिछड़ने पर
जो हिम्मत खाते, पछताते हैं।
धूल झाड़ जो तुरंत सँभलते
वे जीवन में सुख पाते हैं।
- भगवती प्रसाद द्विवेदी
No comments:
Post a Comment
If you have any doubt let me know.