कोयल कविता माधुरी

 17 कोयल

देखो कोयल काली है पर

मीठी है इसकी बोली ।

इसने ही तो कूक - कूककर

आमों में मिश्री घोली।

कोयल कोयल सच बतलाना

क्या संदेसा लाई हो?

बहुत दिनों के बाद आज फिर

इस डाली पर आई हो ।

क्या गाती हो किसे बुलाती

बतला दो कोयल रानी।

प्यासी धरती देख माँगती

हो क्या मेघों से पानी ?


कोयल यह मिठास क्या तुमने 

अपनी माँ से पाई है?.

माँ ने ही क्या तुमको मीठी

बोली यह सिखलाई है?

डाल-डाल पर उड़ना गाना

जिसने तुम्हें सिखाया है

सबसे मीठे-मीठे बोलो

यह भी तुम्हें बताया है

बहुत भली हो तुमने माँ की

बात सदा ही है मानी

इसीलिए तो तुम कहलाती

हो सब चिड़ियों की रानी ।


- सुभद्रा कौमारी चौहान


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